जीएम सरसों का मुद्दा
(GM Mustard Issue)
GM Mustard in Hindi
हाल ही में जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेसल समिति (GEAC) यानि सरकार ने सरसों के DMH-11 प्रजाति की व्यावसायिक खेती की अनुमति को स्थगित कर दिया है | इस ट्रांसजेनिक फसल को
सेंटर फॉर जेनेटिक मैनीपुलेशन ऑफ़ क्रॉप प्लांट, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया था | इससे पहले सन 2009 से बीटी बैंगन के
व्यावसायिक अनुमोदन को भी 2009 से ही रोक कर रखा गया है |
जेनेटिक मॉडिफाइड सरसों क्या है –
DMH-11 यानि (धरा मस्टर्ड हाइब्रिड-11) सरसों की
एक संकर प्रजाति है | संकर प्रजाति सामान्य रूप से एक ही प्रजाति के दो आनुवांशिक
रूप से विविध पौधों के क्रॉस द्वारा प्राप्त किया जाता है | इससे इसके प्रथम पीढ़ी
के पौधें इसके मूल पीढ़ी के पौधों से अधिक पैदावार देते है | लेकिन सरसों में
प्राकृतिक संकरण तंत्र नहीं होता है, जैसा की कपास, मक्के, टमाटर आदि में होता है |
यह इसलिए क्योंकि इसके फूलों में स्त्री और नर दोनों प्रजनन अंग पाया जाता है, जो
की इसे प्राकृतिक रूप से स्व-परागण करने के लिए उपयुक्त बनाता है |
इसलिए वैज्ञानिकों ने जीएम तकनीक का उपयोग करते
हुए सरसों में व्यवहार्य संकरण प्रणाली विकसित की, जिसके परिणाम स्वरूप जीएम सरसों
की संकर प्रजाति (जैसा की दावा किया गया है ) 25-30 प्रतिशत अधिक उपज देती है, अगर
हम इसकी तुलना वर्तमान में देश में उगाए जाने वाली “वरुणा“ जैसी सर्वोत्तम किस्म
से करे|
दिल्ली विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर जेनेटिक
मैनीपुलेशन ऑफ़ क्रॉप प्लांट (CGMCP) के वैज्ञानिकों ने व्यवहार्य
संकरण को करके दिखाया है | उन्होंने इस समस्या को भारतीय सरसों की प्रजाति को पूर्व
यूरोपियन मूल की जुन्सिया लाइन जैसे ‘अर्ली हीरा’ और ‘दोंस्काजा’ से क्रॉस कराया जिसके
द्वारा दो भिन्न जीन पूल के संयोजन से क्रासिंग विकल्प में वृद्धि की गई, जिसके
परिणाम स्वरूप प्रथम पीढ़ी की संतानों में महत्वपूर्ण हेटेरोसिस प्रदर्शित हुए|
हमें संकर प्रजाति की आवश्यकता क्यों है –
अगर हम सन 2014-2015 की बात करे तो भारत ने 10.5 बिलियन डॉलर मूल्य के 14.5 मिलियन टन खाद्य तेलों का
आयात किया था जिसमें लगभग 0.4 मिलियन टन आयातित रेपसीड (सफ़ेद सरसों) तेल शामिल थे, जो कई
व्यापारियों द्वारा स्वदेशी सरसों तेल में मिलाया जाता है |
अगर देश के खाद्य तेल उत्पादन की बात करे तो यह 7.5 मिलियन टन से भी नीचे है, जिसमें
सरसों तेल का हिस्सा लगभग एक चौथाई के बराबर है | इसमें को संदेह नहीं है कि घरेलू
फसल की पैदावार बढ़ाने और आयात पर से निर्भरता का करने की आवश्यकता पर बल दिया जाना
चाहिए | संकरण तकनीक पैदावार को बढ़ावा देने की एक संभावित तकनीक है जिसका कई फसलों
में उपयोग किया गया है और यह सफल भी रहा है |
जीएम सरसों का क्या विवाद है –
- कई वैज्ञानिक यह दावा करते
है कि जब इस समय टिकाऊ खेती और कम लागत खेती की आवश्यकता है तो यह आश्चर्य की बात है कि कृषि वैज्ञानिक
अभी भी विभिन्न फसलों की किस्मों की सिफारिश करते है जो की पर्यावरण और फसल
क्षेत्र को और भी अधिक नुकसानदायक है |
- जीएम सरसों के लिए उर्वरक
और पानी की मात्रा (सामान्य की तुलना में) की दुगुनी आवश्यकता होती है |
- जीएम संकर के द्वारा अन्य
स्वास्थ्य चिंताओं जैसे – एलर्जी, जीन ट्रान्सफर, मुख्यतः एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी
जीन इत्यादि बैक्टीरिया अथवा कोशिकाएं जठरान्त्र सम्बन्धी मार्ग में जीएम खाद्य पदार्थों
द्वारा तथा जीएम पौधों से पारंपरिक फसलों तक जीन की गति अप्रत्यक्ष रूप से खाद्य
सुरक्षा और सुरक्षा के किये खतरा पैदा कर रही है |
- जीएम सरसों पुष्पन और पराग
उत्पादन द्वारा मधुमख्खियों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूप से प्रभावित
करती है
- यह साबित हो चुका है कि प्रोटीएज
अवरोधक मधुमख्खियों की लम्बी उम्र और व्यवहार के लिए हानिकारक है |
- विनियामक कमजोरी – जेनेटिक इंजीनियरिंग
अप्रूवल समिति जो कि जीएमो के बड़े पैमाने पर तथा व्यवसायीकरण के अनुमोदन के लिए
उत्तरदायी है दरसल मिनिस्ट्री ऑफ़ एनवायरनमेंट एंड फ़ॉरेस्ट के अंतर्गत कार्य करती
है जोकि पूर्णतया स्वतंत्र नहीं है |
- जेनेटिक इंजीनियरिंग की समीक्षा
समिति जो कि अनुसन्धान गतिविधियों की निगरानी करती है तथा छोटे पैमाने पर क्षेत्रीय
परिक्षण भी करती है वह भी जैव प्रौद्योगिकी का ही हिस्सा है जिसका प्राथमिक कार्य
जैव प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना है | डीबीटी इसका प्रोमोटर और नियामक भी है | कई
अवसरों पर ट्रांसजीनिक फसलों के विकासकर्ता भी इस नियामक समितियों के सदस्य रह
चुकें है |
क्या भारत को जीएम फसलों पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए –
भारत में जीएम तकनीकी का व्यवसायीकरण बीटी-कॉटन
के जरिये बहुत पहले ही किया जा चुका है जो की मिट्टी के जीवाणु बेसिलस थुरिंजिनिसिस
से बने विदेशी जीनों के शामिल करने पर आधारित है |
देश का कपास उत्पादन में ढाई गुना तक की वृद्धि
देखने को मिली है जब से (2009) बीटी संकर प्रजाति के पौधों का उपयोग हो रहा है | बीटी
कपास द्वारा वास्तव में कोई भी प्रतिकूल प्रभाव मानव तथा पशु स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं
पर नहीं देखा गया है |
जबकि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, बांग्लादेश,
म्यांमार, फिलिपीन्स, और वियतनाम अपने यहाँ फसल की पैदावार में सुधार तथा लागत को
कम करने के लिए जीएम तकनीकी को अपना रहे हैं | लेकिन हम अभी भी अपनी क्षमता पर सवाल
उठा रहे है जो की वैज्ञानिक आधार पर न होकर भावनात्मक आधार पर किया जा रहा है |
भारत द्वारा सन 2009 में बीटी-बैंगन की वाणिज्यिक मंजूरी न देने के
पश्चात् सन 2013 के अंत में बांग्लादेश बीटी-बैंगन की वाणिज्यिक रोपण की मंजूरी देने वाला
पहला देश है | जहाँ पर बीटी-बैंगन को दो सीजन से अधिक कटा गया है जिससे किसानों को
अपने फसल के व्यवसायीकरण से बेहतर बिक्री तथा आय प्राप्त हुई है |
निष्कर्ष –
वर्तमान पर्यावरण
में जहाँ जलवायु परिवर्तन द्वारा कई फसलों की पैदावार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है
जिससे खाद्य सुरक्षा के मोर्चे पर गंभीर परिणाम देखने को मिले है | भविष्य जीएम
फसलों का है, हालाँकि जीएम फसलों के व्यवसायीकरण की अनुमति देने के लिए जीएम फसलों
के आलोचकों को समझाने की जरुरत है जिसके लिए एक मजबूत नियामक ढ़ांचे के आवाश्यकता
है |
इसलिए एक स्वतंत्रत जैव
– प्रौद्योगिकी नियामक प्राधिकरण बनाने की आवश्यकता पर बल दिया जाना चाहिए | जो एक
ऐसा एकल संगठन हो जो कई समितियों को स्थान ले | (जोकि वर्तमान में कम से कम ऐसे छः
नियामक संरचना है) यह प्राधिकरण कृषि, फार्मास्यूटिकल, और जैव-विविधता क्षेत्र में जीएम
के उपयोग के उत्तरदायी हो तथा इसका निपटारा भी करे |
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